Monday, December 26, 2011

दूर जाऊं या पास आऊं 

तुम से दूर जाऊं
या पास आऊं
कुछ समझ नहीं आता.
जब जब तुमसे दूर जाऊं
तो तुम्ही मुझे खींच कर
पास बुलाती हो, 
पर जब मैं 
अपनी ही इक्षा से
तुम्हारे करीब आऊं
तो तुम्ही
न जाने क्यों
मुझसे दूर जाती हो.
अब तुम्ही बताओ, मैं
तुमसे दूर जाऊं
या पास आऊं?
सोचता हूँ
पास आने की 
कोशिश में, गर तुमने
दूर कर दिया तो 
दुःख होगा, तो
क्यों न तुमसे
खुद ही
दूर चला जाऊं, और
अपने दिल को 
सौ बहनों से 
समझा लूं कि
तुम तो मेरी
थी ही नहीं, 
फिर कैसा मोह 
कैसा प्यार?
इस तरह
कम से कम
दिल टूटने के शोर से
मेरी नींद और कुछ सपने
तो नहीं टूटेंगे.
आँखों के बाँध ने
आंसुओं के s अगर को 
जो अब तक रोक रखा है
वो बाँध तो नहीं टूटेंगे.
इसीलिए लगता है
तुमसे दूर चला जाना ही अच्छा.
पास आने से दूरियां 
ऐसे भी बढ़ जाती है, 
उस पर अगर
तुम भी दूर जाने की कोशिश करो
तो पास आने का मतलब ही क्या?
बेहतर हम दूर ही हो जाएँ
और, फिर किसी मोड़ पर 
गर जो हम मिलें
तो ऐसा लगे जैसे
कभी हम मिलें ही न हो.
ऐसा करने से भी
दुःख तो होगा, पर
वो इतना ज्यादा न होगा
जितना तुम्हारे पास आने की 
कोशिश में
दूर जाने से होगा.


 

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